Decentralisation of Power

सत्ता का विकेंद्रीकरण

पिछले 70 वर्षों में भारत में व्यापक बदलाव आया है। यह देश गांवों में बसता था, हमने इस देश में लोकतांत्रिक सिद्धांतों का उपयोग करके परिवर्तन किया है। 70 साल पहले भारत में कठोर जाति प्रथा थी, किसी तरह की गतिशीलता न थी, लोग कुछ अधिक करने की चाह तक नहीं कर सकते थे, वे जड़वत थे। भारत इसी के लिए संघर्ष करता आया है और हम उसे हराने में सफल हुए हैं- पूरी तरह नहीं, लेकिन संतोषजनक पैमाने पर। चीन में भी इसी तरह का बदलाव देखा गया था, हालांकि विचार तो समान ही थे, लेकिन उसके तरीके काफी अलग थे। हमारा बदलाव विकेन्द्रीकृत था, कोई भी व्यक्ति जो चाहता था, उसे कर सकता था, कोई भी कहीं यात्रा करना चाहे, कर सकता था, यह नैसर्गिक है, यह अव्यवस्थित भी है। चीन का तरीका केंद्रीकृत है, यह कम्युनिस्ट पार्टी का तरीका है और इसके बदलाव के शुरुआती चरण में काफी ज्यादा हिंसा देखी गयी।

यदि पिछले 70 वर्षों और उससे पहले हासिल की गयी भारत की सफलता पर गौर करें, तो पाएंगे कि हम सबसे ज्यादा समृद्ध तभी हुए हैं, जब हमने सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया है। यह सत्ता को समान रूप से बंटवारा करने और एकाधिकार खत्म करने से संबंधित है। यह लोगों को सत्ता लौटाने से संबंधित है। हमारा मानना है कि हमें अपने लोगों की समस्याओं को सुलझाते समय उनके ज्ञान पर भरोसा करना जरुरी है और नीतियां तैयार करने की दिशा में सतह से शीर्ष का दृष्टिकोण अपनाना जरुरी है।

जब नीतिगत निर्णय की बात आती है, तो हमारा मानना है कि यह काम जमीनी स्तर पर होना चाहिए। दिल्ली के गलियारे अक्सर जमीनी हकीकतों से अनजान होते हैं और यही कारण है कि केंद्रीय स्तर पर बनने वाली योजनाओं में खामियां होती हैं, जो लोगों के बीच असंतोष जगाती हैं। स्थानीय लोग अपनी समस्याओं को सबसे बेहतर ढंग से समझते हैं, इसलिए इन समस्याओं से निपटने के लिए उन्हें यथासंभव अधिकार और शक्तियां दी जानी चाहिए।

इसी तरीके का अनुसरण करके हमने जो नीतियां तैयार कीं, वे बेहद सफल रही हैं। दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार योजनाओं में से एक-नरेगा कांग्रेस के सामान्य कार्यकर्ता के अवलोकन के आधार पर तैयार हुई। उसने देखा कि स्थानीय तहसीलदार नरेगा जैसी योजना को सफलतापूर्वक लागू करके किसानों और मजदूरों को ईमानदारी से रोजगार के जरिये अपने हालात में सुधार करने के लिए प्रेरित कर रहा है। आरटीआई, खाद्य सुरक्षा और शिक्षा का अधिकार के मामले में भी यही किया गया। ऐसा प्रबल प्रभाव वही सरकार हासिल कर सकती है, जो अपने लोगों को नियंत्रित नहीं करना चाहती, बल्कि उनका उत्थान करने और उनको सशक्त बनाने का इरादा रखती है।

यह चिंतन शैली केवल सामाजिक विकास के कार्यक्रमों या नीति बनाने पर ही लागू नहीं होती। यह केवल तभी असरदार हो सकती है, जब इस विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए देश में शासन व्यवस्था के प्रति हमारे नजरिये तक ले जाया जाए। कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की दिशा में सत्ता का विकेंद्रीकरण सरकार की सफलता की कुंजी है। जब कोई सरकार मुख्य भूमिका निभाने की बजाय तटस्थ रह कर काम करती है, तो वो अपने लोगों के लाभ के लिये और अधिक तेजी से एवं प्रभावी ढंग से काम करती है।

हमारा मानना है कि यह पद्धति समाज को व्यवस्थित करने की भी कुंजी है। आरएसएस और कांग्रेस के बीच अनेक मतभेद हैं, एक प्रमुख मतभेद समाज में व्यवस्था कायम करने के बारे में हमारे नजरिये को लेकर है। आरएसएस का दृष्टिकोण ऊपर से नीचे पदक्रम या हायरार्की है, जहां ज्ञान केंद्रीकृत है - इसलिए सत्ता भी केंद्रीकृत होती है। कांग्रेस का भारत को व्यवस्थित बनाने का नजरिया विकेन्द्रीकृत संरचना का है, जहां ज्ञान सभी के लिये सुलभ हो, इस तरह पदक्रम या हायरार्की को कम किया जाता है।

सत्ता का विकेंद्रीकरण तभी संभव है जब तार्किक चिंतन की शुरुआत घर से ही हो। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में हम यह सुनिश्चित करने के लिए संकल्पबद्ध हैं कि हमारी पार्टी के कार्यकर्ता लोगों की मदद करने, जमीनी स्तर पर बदलाव लाने और उनके भरोसे का समान रूप से समर्थन करने के लिये सशक्त हों। यहां तक कि, जिला स्तर से लेकर महत्वपूर्ण पदों तक पहुंचने वाले कार्यकर्ताओं के विकास में भी यह परिलक्षित होता है, जहां वे पहले से कहीं ज्यादा बड़े पैमाने पर असर पैदा करने में सक्षम हैं। ये कोई लुभावने नारों में लिपटे हुए तड़क-भड़क वाले सिद्धांत नहीं हैं। बल्कि, ये वे सिद्धांत हैं, जो प्रभावी शासन के लिए महत्वपूर्ण हैं।

Stay in the Loop

Message