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राहुल गांधी के बारे में

अपनी जीवन शैली के जरिए राहुल गांधी हमेशा उद्देश्ययुक्त राजनीति के सबसे मजबूत पैरोकार रहे हैं। पिछले वर्षों में उन्होंने कई मुद्दों पर अपनी राय रखी है, लेकिन अहिंसा, समानता और न्याय जैसे मुद्दों पर हमेशा उनका विशेष जोर रहा है। उन्होंने भारतीय राजनीति और इतिहास के साथ गहरे जुड़ाव के माध्यम से इन खूबियों को आत्मसात किया है और भारतीय सामाजिक ताने-बाने के प्रति गहरी समझ विकसित की है। अपने पिता और दादी दोनों को हिंसा और घृणास्पद घटनाओं में खोने के दर्द का अनुभव करने के कारण राहुल गांधी हमेशा अहिंसा और सत्य के गांधीवादी दर्शन के हिमायती रहे हैं।

19 जून 1970 को जन्मे राहुल गांधी ने अपना बचपन भारत के राजनीतिक केंद्र दिल्ली और हिमालय एवं शिवालिक के बीच घाटी में स्थित देहरादून में बिताया। उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, यूएसए जाने से पहले दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज में अपने शैक्षणिक करियर की शुरुआत की। अपने पिता दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद सुरक्षा कारणों से स्नातक के दूसरे वर्ष में राहुल को फ्लोरिडा के रोलिंस कॉलेज में स्थानांतरित कर दिया। राहुल गांधी ने 1994 में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। एक साल बाद उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से एम. फिल की डिग्री प्राप्त की।

राहुल ने अपने पेशेवर करियर की शुरुआत लंदन स्थित एक मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म मॉनिटर ग्रुप के साथ की। वह राजनीति में आने से पहले एक पेशेवर कैरियर बनाने को लेकर दृढ़ थे। वह जल्द ही भारत लौट आए और मुंबई में अपनी खुद की प्रौद्योगिकी परामर्श कम्पनी स्थापित की, जहाँ उन्होंने निदेशक के रूप में अपनी टीम का नेतृत्व किया। प्रबंधन और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उनके काम का प्रभाव उनके राजनीतिक झुकाव में स्पष्ट है। राहुल हमेशा इस बात के प्रबल समर्थक रहे हैं कि तकनीक के सटीक एवं निपुण उपयोग से भारत की सबसे बड़ी सम्पति - उसके नागरिकों की शक्ति बढ़ाई जा सकती है।

2004 में राहुल गांधी के पास अपने देश की सेवा करने और उसके विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने का अवसर आया। उन्होंने अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने और उत्तर प्रदेश में अमेठी के लोगों की सेवा करने की विरासत को जारी रखने का विकल्प चुना।

राहुल ने अपना पहला चुनाव 2,90,853 मतों के भारी अंतर से जीता, जो उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोगों द्वारा उनके प्रति व्यक्त किए गए विश्वास का प्रतीक था। शुरू से ही, राहुल स्पष्ट रूप से मानते रहे हैं कि हमारे देश का भविष्य उसके लोगों के साथ है। पंद्रह साल लंबे राजनीतिक करियर में उतार-चढ़ाव के माध्यम से राहुल ने अपने पहले चुनाव में ही लोगों के दिलों को जीतने वाले बहुत से सिद्धांतों को सच कर दिखाया है।

2013 में, राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी का उपाध्यक्ष चुना गया था। कांग्रेस पार्टी के भीतर, राहुल गांधी ने कांग्रेस के मूल सिद्धांतों की तर्ज पर पार्टी को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के छात्र संगठन और युवा विंग का लोकतांत्रिकरण करने के लिए अथक प्रयास किए और युवा नेताओं का नेतृत्व सुनिश्चित करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करके देश की सबसे पुरानी पार्टी में युवा नेतृत्व की ताजगी सुनिश्चित की। अपने राजनीतिक जीवन में कांग्रेस के मूल मूल्यों के साथ पार्टी को आकार देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका ने उन्हें 2017 में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का पद दिया। राहुल गांधी के मार्गदर्शन में, कांग्रेस पार्टी एक बार फिर राष्ट्र की आवाज बनकर उभरी है।

विपक्षी दल के अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी ने देश के विभिन्न वर्गों की मांगों को उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने गरीबों और हाशिए के लोगों के अधिकारों का पुरजोर समर्थन किया। उन्होंने नोटबंदी, आधार, जीएसटी और खराब तरीके से कार्यान्वित बहुत-सी नीतियों पर सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व किया।

प्रेम एवं एकता के साथ लोकतांत्रिक लड़ाई लड़ने की राहुल गांधी की सोच और रणनीति कांग्रेस पार्टी को एकजुट भारत का सच्चा प्रतिनिधि बनाती है। आगे जाकर, वह इन सिद्धांतों को धरातल पर अमल में लाने का लक्ष्य रखते हैं, जो भारत के नागरिकों को उनकी पूरी क्षमता तक पहुंचने के लिए आवश्यक उपकरण और अवसर प्रदान करे।

17वीं लोकसभा में सांसद के रूप में वर्तमान में उनकी भूमिका केरल के वायनाड निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधि के रूप में है। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद, उन्होंने अपना सारा ध्यान और ऊर्जा वायनाड के लोगों का प्रतिनिधित्व करने और अनुच्छेद 370 के अलोकतांत्रिक निरस्तीकरण एवं कश्मीर में सरकार द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन जैसे कई मुद्दों पर सरकार को सवालों के घेरे में खड़े करने में लगाई । वह भारत के लोगों के लिए सत्य, शांति और सद्भाव की अपनी खोज में अडिग हैं।

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